Time Report : बरसात का मौसम, जहां कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। वहीं यह पशुपालकों के लिए कई चुनौतियां भी लेकर आता है। इस मौसम में पशुओं में विभिन्न बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इनमें सबसे आम और घातक बीमारी है “खुरपका-मुंहपका” (Foot-and-Mouth Disease, FMD)। इसके अलावा, अन्य बीमारियां जैसे कि गलाघोंटू (Haemorrhagic Septicemia), पैरासिटिक इंफेक्शन और स्किन इंफेक्शन भी प्रचलित हैं।
बरसात के मौसम में क्या है खुरपका-मुंहपका (FMD)
लक्षण-
1. पशुओं के खुरों और मुंह में घाव होना
2. अत्यधिक लार का बहना
3. बुखार
4. चबाने और निगलने में कठिनाई
नियंत्रण
1. टीकाकरण- नियमित अंतराल पर पशुओं का टीकाकरण करवाएं। यह बीमारी की रोकथाम में सबसे प्रभावी उपाय है।
2. साफ-सफाई- पशुओं के रहने की जगह को साफ-सुथरा रखें और कीचड़ व गंदगी से बचाएं।
3. संक्रमित पशुओं को अलग रखना: बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत पशु को बाकी पशुओं से अलग कर दें।
4. पशु चिकित्सक से परामर्श: किसी भी बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
गलाघोंटू (Haemorrhagic Septicemia)
लक्षण –
1. पशु का तेज बुखार
2. गर्दन में सूजन
3. सांस लेने में कठिनाई
4. मुँह से लार का बहना
नियंत्रण-
1. टीकाकरण: गलाघोंटू के लिए भी समय-समय पर टीकाकरण करवाना आवश्यक है।
2. जलभराव रोकना- पशुओं के आसपास जलभराव न होने दें।
3. समय पर उपचार- पशु चिकित्सक से परामर्श लेकर उचित एंटीबायोटिक्स का प्रयोग करें।
पैरासिटिक इंफेक्शन
लक्षण-
1. पशु की त्वचा पर घाव या खुजली का होना
2. वजन कम होना
3. बालों का झड़ना
नियंत्रण
1. कीटनाशक का प्रयोग- पशुओं की त्वचा पर कीटनाशक का समय-समय पर छिड़काव करें।
2. साफ-सफाई- पशुओं के रहने की जगह को कीट-मुक्त रखें।
3. पशुओं की जांच-नियमित अंतराल पर पशुओं की जांच कराएं।
स्किन इंफेक्शन
लक्षण –
1. त्वचा पर लाल धब्बे या चकत्ते
2. खुजली और जलन
3. बालों का झड़ना
नियंत्रण
1. साफ-सफाई: पशुओं की त्वचा को साफ रखें और समय-समय पर स्नान कराएं।
2. एंटीसेप्टिक का प्रयोग: त्वचा पर एंटीसेप्टिक लोशन का प्रयोग करें।
3. समय पर उपचार: पशु चिकित्सक से परामर्श लेकर उचित दवाइयों का प्रयोग करें।
निष्कर्ष
बरसात के मौसम में पशुओं में बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है, लेकिन समय पर सही उपाय करके इन बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है। नियमित टीकाकरण, साफ-सफाई, और पशु चिकित्सक से समय-समय पर परामर्श लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, पशुपालकों को पशुओं के लक्षणों पर ध्यान देकर समय पर उपचार करना चाहिए, ताकि पशु स्वस्थ रहें और कृषि कार्य में सहायक सिद्ध हों।