Time Report – सचिन विश्नोई : भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अपने बलबूते बहुमत हासिल करने के मंसूबे को सबसे बड़ा पलीता उत्तर प्रदेश ने लगाया है। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में लगभग आधी सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। 2019 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) के मुकाबले भाजपा को इस बार 28 सीटों का नुकसान हुआ है। भाजपा के बहुमत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा अटकाने का काम यूपी ने किया है।
ये मुद्दे बने हार की वजह
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यूपी में संविधान, आरक्षण पर खतरा, बेरोजगारी, पेपर लीक और महंगाई जैसे मुद्दों ने BJP के लिए मुश्किल हालात पैदा किए। वहीं वर्तमान सांसदों से नाराजगी और गैर यादव पिछड़ी जातियों के छिटकने ने इसमें अहम रोल निभाया। जिससे भाजपा को सीटों के रूप में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।
यहां हुआ सबसे ज्यादा नुकसान
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यूपी में माहौल इस कदर भाजपा के खिलाफ गया कि स्मृति ईरानी, महेंद्र नाथ पांडेय, संजीव बालियान, अजय मिश्रा टेनी, भानु प्रताप वर्मा और कौशल किशोर जैसे केंद्रीय मंत्री लोकसभा चुनाव हार गए। कई बार से चुनाव जीतती आ रहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को भी हार का मुंह देखना पड़ा। वैसे तो यूपी में हुए सात चरणों के चुनाव में हर चरण में भाजपा को अपनी सीटें खोनी पड़ी है पर सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वांचल और अवध क्षेत्र में हुआ है।
जहां मंदिर बनाया वहां भी निराशा
भाजपा के लिए सबसे चौंकाने वाली हार फैजाबाद (अयोध्या) की रही है। फैजाबाद से दो बार के सांसद लल्लू सिंह को समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने धोबी पछाड़ लगाकर पटखनी दी। माना जा रहा था कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद केवल अयोध्या ही के आसपास की ही नही प्रदेश भर में अच्छा असर पड़ेगा लेकिन जो नतीजे सामने उसने पूरे देश को चौका दिया। नया सवाल पैदा होगा है कि क्या अब मंदिर और धर्म की राजनीति के दिन चले गए?
लखनऊ छोड़ पूरे मंडल में लगी झाड़ू
अवध क्षेत्र में राजधानी लखनऊ को छोड़कर पड़ोसी जिले बाराबंकी, सीतापुर, लखीमपुर, सुल्तानपुर, रायबरेली, अमेठी, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, प्रतापगढ़, कौशांबी, श्रावस्ती, संतकबीरनगर और बस्ती लोकसभा में भीे भाजपा को हार देखनी पड़ी। इसके अलावा पूर्वांचल में वाराणसी के आसपास की सीटें घोसी, लालगंज, आजमगढ़, मछली शहर, चंदौली, जौनपुर और बलिया में भी भाजपा हार गई।
लखनऊ में 15 सालों में सबसे छोटी जीत
इस बार भाजपा के खिलाफ मतदाताओं का नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर दशा में BJP का गढ़ बनी रही राजधानी की लखनऊ लोकसभा से रक्षा मंत्री राजनाथ को लाखों नहीं बल्कि कुछ हजार वोटों से जीत मिली है। यह बीते 15 सालों में लखनऊ में भाजपा को मिली सबसे कम वोटों की जीत है। इतना ही नहीं वाराणसी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली जीत पहले के मुकाबले खासी कमजोर रही है। रायबरेली से राहुल गांधी ने लगभग चार लाख वोटों से, मैनपुरी से डिंपल यादव 2.21 लाख तो कन्नौज से अखिलेश यादव ने पौने दो लाख वोट से जीत दर्ज की।
टिकट वितरण ने बिगाड़ दिया खेल
दरअसल भाजपा की कमजोर हालात के पीछे संविधान और आरक्षण को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन का सघन चुनाव अभियान और जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए व्यूह रचना भारी पड़ा है। इस बार इंडिया गठबंधन ने बड़ी तादाद में गैर यादव पिछड़ों को टिकट देकर भाजपा का समीकरण बिगाड़ा तो बहुत कम तादाद में मुसलमानों को मैदान में उतार कर ध्रुवीकरण नहीं होने दिया।
गर्मी ने भी हार में दिया योगदान
बेतहाशा गर्मी भी भाजपा (BJP) के लिए नुकसानदेह साबित हुई। गर्मी की वजह से शहरी और सवर्ण मतदाता घर से बाहर कम निकले जिससे मतदान कम हुआ। जीत से आश्वस्त भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उदासीनता ने भी काम खराब किया। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी (BSP) के कमजोर होने की दशा में बड़ी तादाद में दलित वोट भी इस बार संविधान बचाओ मुहिम के नाम पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को चला गया। बड़ी तादाद में पुराने सांसदों को रिपीट करने का भी खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा।